317
कल तक मेरा दम भरती थी
जिसकी दुआओं में था शामिल,
आज उसी की नज़रॊ में हूँ
आवारा ,नाक़िस, नाक़ाबिल
318
दुनिया को लगता हो शायद
झूठ सभी किस्से होते हैं,
प्यार वफ़ा तनहाई आहें
जीवन के हिस्से होते हैं ।
319
बिना बताए चली गई तुम ,
क्या थी ग़लती, प्रिये हमारी
इतना तो बतला कर जाती,
कब तक देखूँ राह तुम्हारी ।
320
जब से रूठ गई वो मुझसे
रूठ गया ज्यों चाँद गगन से,
आती नहीं बहारें अब तो
जैसे खुशबू गई चमन से
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