रविवार, 8 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 067

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 067 ओके

265

दर्द सुनाऊँ आह भरूँ तो

दीवारें सब सुना करेंगी

अगर बुलाऊँ शिद्दत से तो

तसवीरें सब बोल उठेंगी

 

266

ना देना था, ना तुम देती

लेकिन उल्का-तीर न देती,

तोड़ दिया जब एक भरोसा

हँस कर पाहन-पीर न देती ।

 

267

रूप तुम्हारा क्या है, सुमुखी !

सच के ऊपर झूठ का परदा,

इक दिन इसको ढल जाना है

मन फिर हाथ रहेगा मलता ।

 

268

कुछ तो रही शिकायत तुम से

कुछ अपने ग़म का रोना था,

दुनिया को मैं क्या बतलाता

जो होना था, वह होना था ।

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