शनिवार, 7 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 53

 

209

दुनिया भर का बोझ उठाए

बेमतलब फिरती रहती हो ।

अपना ही ग़म क्या कम है जो

 औरो का ग़म ख़ुद सहती हो ।

 

210

बेमतलब क्या सोच रही हो

कौन यहाँ किसका होता है ?

जीवन लम्बा एक सफ़र है

तनहा ही चलना होता  है ।

 

211

पलक-पाँवड़े स्वागत वाले

एक नहीं दस-बीस मिलेंगे .

गली गली हर मोड़ मोड़ पर

तुम्हें झुकाते शीश मिलेंगे ।

 

212

मेरे जैसा इक्का-दुक्का

तुम्हें कहाँ हमदर्द मिलेगा,

 शायद कोई मिल भी जाए

लेकिन रिश्ता सर्द मिलेगा  


 

कोई टिप्पणी नहीं: