शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

ग़ज़ल 294[59इ] : जमाल-ओ-हुस्न जब उनका----

 ग़ज़ल 294

1222---1222---1222--1222


जमाल-ओ-हुस्न  जब उनका बहारों पर उतर आया

चमन गाने लगा सरगम दिल अपना भी निखर आया


हज़ारों रंग से हमने सँवारी ज़िंदगी अपनी

मगर हर रंग में इक रंग उनका भी उभर आया


मुहब्बत में कमी होगी, वो नादाँ भी रहा होगा

तुम्हारे दर तलक जा कर भी वापस लौट कर आया


निगाह-ए-शौक़ से क्या क्या मनाज़िर है नहीं गुज़रे

न उनकी रहगुज़र आई, न नक़्श-ए-पा नज़र आया


ढलेगी शाम अब साथी परिंदे घर को लौटेंगे

चलो अब ख़त्म होने को हमारा भी सफ़र आया


समझना ही नहीं चाहा कभी इस दिल की चाहत को

तुम्हें सिक्के का बस क्यों  एक ही पहलू नज़र आया


ये दीवानों की बस्ती है, फ़ना है आख़िरी मंज़िल

तमाशाघर नहीं 'आनन' समझ कर क्या इधर आया ?

-आनन्द.पाठक-






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