शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 047

 

 अनुभूतियाँ 047 ओके

185

एक उसी के मोहरे हम सब

जिधर चलाता, उधर ही चलते,

पहले से जो लिखा हुआ है

भाग्य-लेख कब, कहाँ बदलते ।

 

186

मैने छोड़ा, तुमने छोड़ा

इन बातों का क्या मतलब है ,

जो होना था हो ही गया वह

क्या करना इस दिल का अब है।

187

प्रिये! तुम्हारा दोष नहीं था

मन पर अपने बोझ न रखना,

काम नियति का यह भी होता

समय समय पर हमें परखना

 

188

होना है जो होगा ही वह

लाख जतन जितना भी कर लो,

मुठ्ठी खाली ही रहनी है

जीवन भर तुम जितना भर लो


 

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