185
एक उसी के मोहरे हम सब
जिधर चलाता, उधर ही चलते,
पहले से जो लिखा हुआ है
भाग्य-लेख कब, कहाँ बदलते ।
186
मैने छोड़ा, तुमने छोड़ा
इन बातों का क्या मतलब है ,
जो होना था हो ही गया वह
क्या करना इस दिल का अब है।
187
प्रिये! तुम्हारा दोष नहीं था
मन पर अपने बोझ न रखना,
काम नियति का यह भी होता
समय समय पर हमें परखना
188
होना है जो होगा ही वह
लाख जतन जितना भी कर लो,
मुठ्ठी खाली ही रहनी है
जीवन भर तुम जितना भर लो
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