शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त45

 

 

177

नहीं इनायत रही तुम्हारी

फूल सूखने लगे चमन के,

पहले वाली बात नहीं अब

फूल महकते थे जब मन के ।

 

178

सावन की रिमझिम बूँदे अब

तन में रह रह आग लगाती,

विगत बरस हम तुम झूले थे,

याद मुझे इस बार झुलाती ।

 

179

दिल पर तुम क्यों ले लेती हो

दुनिया वालों की बातों को ,

उन को तो बस काम यही है

तुम क्यों जगती हो रातों को ।

 

180

झूठ इसे मैं कैसे मानूँ

आँखों देखी सब बातें हैं ।

तेरे आँचल में खुशियाँ है

मुझको ग़म की सौगाते हैं ।


 

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