393
इतना तो मालूम नहीं है
खुशियाँ कब आतीं कब जातीं,
लेकिन मेरी तनहाई में
यादें तेरी साथ निभातीं
394
आख़िर सुख की
सीमा क्या है
कितने सुख को सुख समझोगी ?
क्यों लगता दुख परबत जैसा
कब तक दुखड़ा तुम रोओगी ?
395
एक द्वन्द चलता रहता है
आजीवन इस मन के अन्दर,
पाप-पुण्य क्या, ग़लत सही क्या
मन उलझा रहता जीवन भर।
396
ढूँढ
रहा हूँ जाने किसको
जिसको ढूँढ न पाए ज्ञानी,
लेकिन
सच की प्यास एक है
सदियों
की, जानी पहचानी ।
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