गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 99

 

393

इतना तो मालूम नहीं है

खुशियाँ कब आतीं कब जातीं,

लेकिन मेरी तनहाई में

यादें तेरी साथ निभातीं

 

      394

आख़िर सुख की सीमा क्या है

कितने सुख को सुख समझोगी ?

क्यों लगता दुख परबत जैसा

कब तक दुखड़ा तुम रोओगी ?

 

395

एक द्वन्द चलता रहता है

आजीवन इस मन के अन्दर,

पाप-पुण्य क्या, ग़लत सही क्या

मन उलझा रहता जीवन भर।

 

396

ढूँढ रहा हूँ जाने किसको

जिसको ढूँढ न पाए ज्ञानी,

लेकिन सच की प्यास एक है

सदियों की, जानी पहचानी ।


 

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