रविवार, 29 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ 119/06

 

क़िस्त 119/क़िस्त 6

 

473

देख रही हूँ दूर खड़े तुम

प्यास हमारी, तुम हँसते हो

बात नई तो नहीं है ,प्रियतम !

श्वास-श्वास  में  तुम बसते हो

 

474

आज नहीं तो कल लौटेंगी

गईं बहारें  फिर उपवन में

लौटोगी तुम फूल खिलेंगे

मेरे इस वीरान चमन में

 

 

475

निश-दिन याद करूंगा तुमको

मेरा हक़ है इन यादों पर

अनजाने जो किया था तुमने

मुझे भरोसा उन वादों पर

 

476

भाव समर्प्ण नहीं हॄदय में

व्यर्थ तुम्हारी सतत साधना

पूजन-अर्चन से क्या होगा

मन में हो जब कुटिल भावना

कोई टिप्पणी नहीं: