क़िस्त 119/क़िस्त 6
473
देख रही हूँ दूर खड़े तुम
प्यास हमारी, तुम हँसते हो
बात नई तो नहीं है ,प्रियतम !
श्वास-श्वास में
तुम बसते हो
474
आज नहीं तो कल लौटेंगी
गईं बहारें फिर उपवन में
लौटोगी तुम फूल खिलेंगे
मेरे इस वीरान चमन में
लाख मना करता है ज़ाहिद
कब माना करता है यह दिल
मयखाने से बच कर चलना
कितना होता है यह मुश्किल
476
भाव समर्प्ण नहीं हॄदय में
व्यर्थ तुम्हारी सतत साधना
पूजन-अर्चन से क्या होगा
मन में हो जब कुटिल भावना
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