बुधवार, 11 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त90

 

357

पता तुम्हारा सब जाने हैं

योगी-भोगी या सन्यासी,

लेकिन वह भी भटक रहे हैं

मन्दिर मन्दिर मथुरा-काशी |

 

358

तुम सावन की बदली जैसी

जाने किधर किधर से उमड़ी,

एक मेरा मन छोड़ के प्यासा

जाने किधर किधर को बरसी |

 

359

आसमान से उतर चाँदनी

करने आई सैर चमन की,

जाते जाते पूछ रही थी

कहीं ख़बर क्या कुछ ’आनन’ की|

 

360

कली कली में फूल फूल में

गन्ध तुम्हारी समा गई है,

पुष्प-वाटिका की खुशबू ही

पता तुम्हारा बता गई है ।

 

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