क़िस्त 123/क़िस्त 10
जब से दूर गए हो प्रियतम
साथ गईं मेरी साँसे भी
देख रही हैं सूनी राहें
और प्रतीक्षारत आँखे भी
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मीठी मीठी बातें उनकी
ज़हर भरें हैं दिल के भीतर
नए ज़माने की रस्में हैं
क्यों लेती हो अपने दिल पर
नफ़रत के बादल है अन्दर
कुछ दिन में जब छँट जाएँगे
प्रेम दया करुणा के सागर
खुद बह कर बाहर आएँगे
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राह अभी माना दुष्कर है
उसके आगे राह सरल है
लक्ष्य साधना क्या मुश्किल है
इच्छा शक्ति अगर अटल है
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