रविवार, 29 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ 123/10

 

क़िस्त 123/क़िस्त 10

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जब से दूर गए हो प्रियतम

साथ गईं मेरी साँसे भी

देख रही हैं सूनी राहें

और प्रतीक्षारत आँखे भी

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मीठी मीठी बातें उनकी

ज़हर भरें हैं दिल के भीतर

नए ज़माने की रस्में हैं

क्यों लेती हो अपने दिल पर

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नफ़रत के बादल है अन्दर

कुछ दिन में जब छँट जाएँगे

प्रेम दया करुणा के सागर

खुद बह कर बाहर आएँगे

 

492

राह अभी माना दुष्कर है

उसके आगे राह सरल है

लक्ष्य साधना क्या मुश्किल है

इच्छा शक्ति अगर अटल है


 

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