शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 108

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बाजी बिछी हुई है, प्यारे !

हम बिसात के सब मोहरे हैं,

हाथी -घोड़ा ,राजा-रानी

एक बुलावे तक ठहरे हैं ।

 

430

छाप-तिलक या माला भगवा

ये साधन है, साध्य नहीं हैं,

यह तो एक छलावा भर है

मन में जब ’आराध्य’ नहीं हैं।

 

431

कभी कभी बीती यादों से

आँखें भर आती बेमौसम

जाने कहाँ गए वो दिन अब

पहलू में होता था हमदम ।

 

432

मेघदूत ! बस एक बार फिर

जा कर कह दे पाषाणी  से

"व्यर्थ विवेचन करना इस पर

दिल तोड़ा किसने वाणी से?"


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