233
चाँद सदा चमका करता है
सूरज की किरनों के दम से,
भला चमकता तुम बिन कैसे
मन मेरा सब झूठ भरम से ?
234
सफ़र क़लम का चलता रहता
सुख मे, दुख में, जुल्म-सितम में।
अँधियारों से लड़ना है तो
नई रोशनी भरो क़लम में ।
235
दर्द छुपा कर हँसना तुम ने
सीखा कहाँ, बता दो हमदम !
लाख छुपाना मैं भी चाहूँ
पढ़ लेती हो कैसे ,प्रियतम !
236
यही हुनर मै सीख न पाया
वादा करना और न आना ,
दिलकश लगता मुझे तुम्हारा
हँस कर करना रोज़ बहाना ।
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