शनिवार, 7 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 59

 

233

चाँद सदा चमका करता है

सूरज की किरनों के दम से,

भला चमकता तुम बिन कैसे

मन मेरा सब झूठ भरम से ?

 

234

सफ़र क़लम का चलता रहता

सुख मे, दुख में, जुल्म-सितम में।

अँधियारों से लड़ना है तो

नई रोशनी भरो क़लम में ।

 

235

दर्द छुपा कर हँसना तुम ने

सीखा कहाँ, बता दो हमदम !

लाख छुपाना मैं भी चाहूँ

पढ़ लेती हो कैसे ,प्रियतम !

 

236

यही हुनर मै सीख न पाया

वादा करना और न आना ,

दिलकश लगता मुझे तुम्हारा

हँस कर करना रोज़ बहाना ।


 

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