शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 50

 

197

क्या खोया है मुझमें, जो अब

ढूँढ रही हो साँझ -सकारे ,

सौंप दिया था हमने सब कुछ

जो कुछ भी था पास हमारे ?

 

198

एक बची तसवीर तुम्हारी

नक्स हुई है दिल के अन्दर,

कभी नहीं लौटा पाऊँगा

एक बची बस वही धरोहर ।

199

दिन भर के तुम थके हुए हो

सूरज अब ढलने वाला है ,

शाम ढली सामान समेटॊ

ख़त्म सफ़र होने वाला है ।

 

200

दुनिया अपनी राह लगेगी

नहीं किसी उम्मीद मे रहना

अपना दुख ही  साथ रहेगा

अपना दुख है खुद ही सहना

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