रविवार, 8 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 65

 

257

प्यार भरी बातें करनी थी

लेकिन वह भी मौसम बीता,

कल तक दिल में सौ-सौ बातें

आज उसी दिल का घट रीता ।

 

258

बीते दिन की बात न करना

दिल सुन कर हो जाता भारी,

और किसी दिन मिल बैठेंगे

सुन लेंगे फिर व्यथा तुम्हारी।

 

259

माया की ही सब माया है

दलदल में हम फ़ँसते जाते,

ऐसा क्यों होता है सोचो

फिर भी हम सब हँसते जाते

 

260

खुद को झुठलाने की खातिर

दुनिया कितनी स्वांग रचाता,

सच का केवल एक रूप है

झूठ कहाँ कब तक चल पाता ।


 

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