257
प्यार भरी बातें करनी थी
लेकिन वह भी मौसम बीता,
कल तक दिल में सौ-सौ बातें
आज उसी दिल का घट रीता ।
258
बीते दिन की बात न करना
दिल सुन कर हो जाता भारी,
और किसी दिन मिल बैठेंगे
सुन लेंगे फिर व्यथा तुम्हारी।
259
माया की ही सब माया है
दलदल में हम फ़ँसते जाते,
ऐसा क्यों होता है सोचो
फिर भी हम सब हँसते जाते
260
खुद को झुठलाने की खातिर
दुनिया कितनी स्वांग रचाता,
सच का केवल एक रूप है
झूठ कहाँ कब तक चल पाता ।
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