445
क़तरा क़तरा मिल जाता है
बन जाता है एक समन्दर,
भेद खत्म फिर हो जाता है
क्या था बाहर, क्या था अन्दर ।
446
कुछ तो कमियाँ सब के अन्दर
सबको क्या सब कुछ हासिल है ?
कब होता इन्सान फ़रिश्ता
हस्ती किसकी कब कामिल है ?
447
यह "अनुभूति" नही किसी की
तेरी, मेरी, हम सबकी है,
फ़र्क यही कि मैने कह दी
और सभी ने बस सह ली है ।
448
प्रेम समर्पण एक साधना
चलता नहीं दिखावा इसमें
पाने की कुछ चाह न रहती
बस देना ही देना जिसमें
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