बुधवार, 11 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 86

 

341

देख तेरी तसवीर न जाने

दिल जाने क्या क्या गाता है,

दीवारों से बातें करता-

किस दुनिया में खो जाता है ।

 

342

खुशियाँ हो या रंज-ओ-ग़म हो

मौसम है, मौसम बदलेगा,

रात अगर है, दिन भी होगा

एक नया सूरज निकलेगा ।

 

343

नदियाँ अपनी मर्यादा में

जब तक बहती , मनभावन हैं,

तोड़ कभी तट्बन्ध, बहें तो

कर देती फिर जल-प्लावन हैं।

 

344

मर्यादा के अन्दर रहना

कितना सुखद भला लगता है,

वरना तो हर शख़्स यहाँ तो

विष से जला बुझा लगता है ।


 

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