341
देख तेरी तसवीर न जाने
दिल जाने क्या क्या गाता है,
दीवारों से बातें करता-
किस दुनिया में खो जाता है ।
342
मौसम है, मौसम बदलेगा,
रात अगर है, दिन भी होगा
एक नया सूरज निकलेगा ।
343
नदियाँ अपनी मर्यादा में
जब तक बहती , मनभावन
हैं,
तोड़ कभी तट्बन्ध, बहें तो
कर देती फिर जल-प्लावन हैं।
344
मर्यादा के अन्दर रहना
कितना सुखद भला लगता है,
वरना तो हर शख़्स यहाँ तो
विष से जला बुझा लगता है ।
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