शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त106

 

421

जाने क्या है चाहे जितनी

लरज गरज कर बदली बरसी।

प्यास है ऐसी, बुझी न अबतक

प्यासी धरती फिर से तरसी ।

 

422

कहने की तो बात नहीं है

बिना कहे दिल रह ना पाए

दर से जिसको उठा दिए तुम

अब वो कहाँ किधर को जाए?

 

423

जितनी बार मिली तुम मुझ से

नज़र झुकाए देखा मैने,

मर्यादा की जो रेखा थी

पार न की वो रेखा मैने ।

 

424

उतना ही सच नहीं कि जितना

ये आंखें जो देखा करती ,

परदे के पीछे भी सच है

मै ही क्या सब दुनिया कहती। 


 

कोई टिप्पणी नहीं: