रविवार, 8 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 62

 

245

भूलूँ भी तो कैसे भूलूँ,

तुम्ही बता दो क्या करना है ?

मर मर कर हर पल जीना या

जी जी कर हर पल मरना है ?

 

246

मैं हूँ मेरी क़लम साथ में

और साथ में तनहाई है,
महकी महकी याद तुम्हारी
जाने क्या कहने आई है ?

247

अगर कभी लिखने भी बैठूँ

बीती बातों के अफ़साने,

हर पन्ने पर अंकित होंगे

सिर्फ़ तुम्हारे सभी बहाने

 

248

अलग हो गई राह तुम्हारी

नज़र तुम्हारी बदल गई अब,

मैने तो स्वीकार कर लिया

दिल को यह स्वीकार हुआ कब?

 

 

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