245
भूलूँ भी तो कैसे भूलूँ,
तुम्ही बता दो क्या करना है ?
मर मर कर हर पल जीना या
जी जी कर हर पल मरना है ?
246
मैं हूँ मेरी क़लम साथ में
और साथ में तनहाई है,
महकी महकी याद तुम्हारी
जाने क्या कहने आई है ?
247
अगर कभी लिखने भी बैठूँ
बीती बातों के अफ़साने,
हर पन्ने पर अंकित होंगे
सिर्फ़ तुम्हारे सभी बहाने
248
अलग हो गई राह तुम्हारी
नज़र तुम्हारी बदल गई अब,
मैने तो स्वीकार कर लिया
दिल को यह स्वीकार
हुआ कब?
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