गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 36

 

141

जो कुछ भी था पास हमारे

किया समर्पित तुम को मन से,

क्यों अर्पण स्वीकार नहीं था ?

रही शिकायत क्या पूजन से ?

 

142

भाव नही जब समझा तुमने

और न समझी दिल की सीरत,

उपहारों में देखी तुमने

उपहारों की क्या है कीमत ?

 

143

पीछे मुड़ कर क्या देखूँ मैं

बीत गया सो बीत गया अब

आशाओं की किरण सामने

राग नया है, गीत नया अब ।

 

 

 

144

चाहत को, एहसास, प्यार को

तुमने एक दिखावा समझा

विकल हॄदय के आर्तनाद को

तुमने एक छलावा  समझा ।


-आनन्द.पाठक-

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