रविवार, 18 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 028

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 028 ओके
 
109
हाथ बढ़ा कर छूते कैसे
हाथ हमारे कटे हुए थे.
मिलते भी तो क्या देते हम
वक़्त के हाथों लुटे हुए थे
 
110
बात तुम्हारी नहीं है, जानम !
बात ज़माने की, सब की है ?
प्रेम कहानी सबकी यक-सा
तुमने ही क्यों दिल पर ली है?
 
111
मेरी ख़ुशियों में रहती है
दुनिया भर की साझेदारी
पर जब अपना ग़म होता है
 ढोने की होती लाचारी ।
 
112
छोड़ गई पूजा की थाली
बिखर गए सब पत्रम-पुष्पम ,
कब तक रहूँ प्रतीक्षारत मै
तुम्हीं बता दो मेरे प्रियतम !
-आनन्द.पाठक-
 
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