बुधवार, 21 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ: किस्त 032

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 032

125

जब से तुम हमराह हुई हो

साथ हमारे ख़ुद ही मंज़िल ,

और हमे अब क्या करना है

आगे राह भले हो मुशकिल ।

 

126

’और मिल गया होगा कोई’

सोचा तुमने, कैसे सोचा ?

मन में तुम्हारे क्यों दुविधा है?

 मुझ पर क्या अब नहीं भरोसा ?

127

लटें तुम्हारी छू कर आते

प्रात-समीरण गाते सरगम,

पूछ रहीं हैं कलियाँ कलियाँ

बेमौसम क्यों आया मौसम ?

 

128

पास भी आकर दूर हो गया

दिल ने जिसको चाहा हरदम

जाने किसकी नज़र लगी थी

जाने कैसा था वह जानम !


-आनन्द.पाठक-

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