125
जब से तुम हमराह हुई हो
साथ हमारे ख़ुद ही मंज़िल ,
और हमे अब क्या करना है
आगे राह भले हो मुशकिल ।
126
’और मिल गया होगा कोई’
सोचा तुमने, कैसे सोचा ?
मन में तुम्हारे क्यों दुविधा है?
क्या मुझ पर अब नहीं भरोसा ?
127
लटें तुम्हारी छू कर आते
प्रात-समीरण गाते सरगम,
पूछ रहीं हैं कलियाँ कलियाँ
बेमौसम क्यों आया मौसम ?
128
पास भी आकर दूर हो गया
दिल ने जिसको चाहा हरदम
जाने किसकी नज़र लगी थी
जाने कैसा था वह जानम !
-आनन्द.पाठक-
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