रविवार, 18 दिसंबर 2022

मुक्तक 07/ 05डी

 :1:

कोई हफ़्तों न करे बात, कोई बात नहीं

आप दो पल न करें बात तो डर लगता है

दिल-ए-वीरान में अब कौन इधर आता है

आप आते हैं तो  वीरान भी घर लगता है


:2:

दर्द-ए-हस्ती है मुख़्तसर भी नहीं

ख़त्म होने को ये सफ़र भी नहीं

रंग मुझ पर चढ़ा मुहब्बत का

और इसकी मुझे ख़बर भॊ नहीं


;3:

तुम्हारी गली से निकल कर जो आया

ये दुनिया न भायी , न ख़ुद को मैं भाया

अजब सा नशा चढ़ गया है जो मुझ पर

न उतरे कभी ज़िंदगी भर ख़ुदाया !


:4:

आप से जब मिले हम सफल हो गए

रास्ते ज़िंदगी के सरल हो गए

दर्द उड़ते रहे बादलों की तरह

आँसुओं में ढले तो ग़ज़ल हो गए


-आनन्द.पाठक-

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