:1:
कोई हफ़्तों न करे बात, कोई बात नहीं
आप दो पल न करें बात तो डर लगता है
दिल-ए-वीरान में अब कौन इधर आता है
आप आते हैं तो वीरान भी घर लगता है
:2:
दर्द-ए-हस्ती है मुख़्तसर भी नहीं
ख़त्म होने को ये सफ़र भी नहीं
रंग मुझ पर चढ़ा मुहब्बत का
और इसकी मुझे ख़बर भॊ नहीं
;3:
तुम्हारी गली से निकल कर जो आया
ये दुनिया न भायी , न ख़ुद को मैं भाया
अजब सा नशा चढ़ गया है जो मुझ पर
न उतरे कभी ज़िंदगी भर ख़ुदाया !
:4:
आप से जब मिले हम सफल हो गए
रास्ते ज़िंदगी के सरल हो गए
दर्द उड़ते रहे बादलों की तरह
आँसुओं में ढले तो ग़ज़ल हो गए
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें