ग़ज़ल 401 [43-A ]
1212---1122---1212---22
जो गीत दर्द के गाते नहीं , तो क्या करते
तमाम उम्र सुनाते नहीं , तो क्या करते ।
कड़े थे शर्त हमारी तो ज़िंदगी के मगर
उधार हम जो चुकाते नहीं, तो क्या करते !
हज़ार क़ैद थे आइद हमारे ख़्वाबों पर
हर एक ख़्वाब मिटाते नहीं, तो क्या करते।
उमीद थी कि वो आएँगे खुद बख़ुद चल कर
पयाम दे के बुलाते नहीं, तो क्या करते ।
तमाम लोग थे ईमाँ खरीदने निकले-
इमान अपना बचाते नहीं, तो क्या करते ।
शरीफ़ लोग भी बातिल के साथ साथ खड़े
अलम जो सच का उठाते नहीं, तो क्या करते ।
हर एक मोड़ पे नफ़रत की तीरगी ’आनन’
चिराग़-ए-इश्क़ जलाते नहीं, तो क्या करते ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
आइद थे = लागू थे
पयाम दे के = संदेश भेज कर
बातिल के साथ = झूठ के साथ
तीरगी = अँधेरा
अलम = झंडा
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