कविता 22 : हम भारत की--
हम भारत की विपुल संपदा
हम भारत की जनता
जहाँ विविधता में एकता।
सत्य अहिंसा के अनुगामी
संस्कृति मे हम बहुआयामी
प्रेम, दया , करूणा के द्योतक
दान, क्षमा, के हैं हम पोषक
विश्वगुरु के हम उदघोषक
हमी सनातन
जिसका रज कण भी चन्दन
भारत माँ की सतत वंदना
भारत माँ को सतत नमन ।
-आनन्द.पाठक-
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