सोमवार, 1 जुलाई 2024

कविता 16: बस्तियाँ जलती हैं

  कविता 16/01: बस्तियाँ जलती हैं--


बस्तियाँ जलती हैं
चूल्हे बुझते हैं, 
सपने मरते हैं ।
कर्ज उतारना था
बेटी ब्याहना था 
बेटा पढ़ाना था।
कौन है वो लोग
जो बुझे चूल्हे पर
सेंकते है रोटियाँ
गिन रहे
संसद भवन की सीढियाँ


-आनन्द.पाठक-

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