कविता 16/01: बस्तियाँ जलती हैं--
बस्तियाँ जलती हैं
चूल्हे बुझते हैं,
सपने मरते हैं ।
कर्ज उतारना था
बेटी ब्याहना था
बेटा पढ़ाना था।
कौन है वो लोग
कर्ज उतारना था
बेटी ब्याहना था
बेटा पढ़ाना था।
कौन है वो लोग
जो बुझे चूल्हे पर
सेंकते है रोटियाँ
गिन रहे
संसद भवन की सीढियाँ
-आनन्द.पाठक-
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