कविता 16/01: बस्तियाँ जलती हैं--
बस्तियाँ जलती हैंचूल्हे बुझते हैं, सपने मरते हैं ।कर्ज उतारना थाबेटी ब्याहना था बेटा पढ़ाना था।कौन है वो लोगजो बुझे चूल्हे परसेंकते है रोटियाँगिन रहेसंसद भवन की सीढियाँ
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