गुरुवार, 18 जुलाई 2024

कविता 18: कह न सका मैं --

 कविता 18 : कह न सका मैं---


कह न सका मैं 

जो कहना था ।

मौन भाव से सब सहना था।

तुम ही कह दो।


शब्द अधर तक आते आते

ठहर गए थे।

अक्षर अक्षर बिखर गए थे।

आँखों में आँसू उभरे थे ।

 पढ़ न सका मैं |

जो न लिखा था

तुम ही पढ़ दो।

कह न सकी जो तुम भी कह दो

कह न सका मैं , तुम ही सुन लो।


-आनन्द.पाठक-


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