ग़ज़ल 399 [ 59 F]
21---121---121--122 // 21---121--121--12
बुतखाने मे जाकर हमने, राज़-ए-मुहब्बत आ'म किए
जाने क्या क्या कह कर हमको, लोग अबस बदनाम किए ।
शिकवा, आम शिकायत तुमसे, चाहे जितना कर लें हम
नाम तुम्हारा ही ले ले कर, सुबह किए हम, शाम किए ।
इस्याँ अपना जग ज़ाहिर है, और इबादत उल्फत भी
जो भी हासिल इस दुनिया से, सारे उनके नाम किए ।
तनहाई में आँखें नम थी, रंज़ो-ओ-ग़म थे साथ मेरे
एक तेरी तस्वीर मेरा दिल, पूरी रात कलाम किए ।
कितने दौर- ए- जाम चले हैं ,फिर भी प्यास अधूरी है
जब जब प्यास बढ़ी है यारब!, याद तुम्हें हर गाम किए
अक्स तुम्हारा हर शै में है, कब हमने इनकार किया
वैसे हम हर नक्श-ए-पा पर, सजदा और सलाम किए
हस्ती अपनी क्या है ’आनन’, एक तमाशा मेला है ,
दिन भर दौड़े, भागे, घूमे, रात हुई आराम किए ।
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