अनुभूतियाँ 142/29
565
रिश्ते खत्म नहीं होते यह
दो दिन की है यह बात नहीं
द्शकों से इसे सँभाला है
पल दो पल के जज़्बात नहीं
566
सब कस्मे, वादे एक तरफ़
कुछ सख़्त मराहिल एक तरफ़
लहरों से कश्ती जूझ रही
ख़ामोश है साहिल एक तरफ़ ।
ख़ामोश है साहिल एक तरफ़ ।
567
मेरे बारे में जो समझा
मेरे बारे में जो समझा
अच्छा सोचा, दूषित समझा
यह सोच सहज स्वीकार मुझे
तुमने मुझको कलुषित समझा ।
568
कुछ बातें ऐसी भी क्या थीं
जो मन मे ही रख्खा तुमने
खुल कर तुम कह सकती थी
तुमको न कभी रोका हमने
-आनन्द पाठक-
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