रविवार, 14 जुलाई 2024

ग़ज़ल 396 [39-A] : जब कभी हम से वह मिला करता--

 ग़ज़ल 396/39-A]


2122---1212-  22

जब भी  मुझ से है वो मिला करता

जाने क्यों दिल मेरा डरा करता ।

 

उसकी तक़रीर जब कहीं होती

हादिसा भी वहीं हुआ करता ।

 

जख्म अपना उसे दिखाता हूँ

दर्द सुन कर भी अनसुना करता ।

 

फूल बन कर जिसे महकना  था

बन के काँटा वो क्यों  उगा करता ।

 

सामना सच से जब भी होता है

रंग उसका है क्यों उड़ा करता ।

 

रोशनी क्या है, क्या वो समझेगा,

जो अँधेरों में है पला करता ?

 

संग-दिल लाख हो भले ’आनन’

दिल में झरना है इक बहा करता ।

 


 

-आनन्द.पाठक -


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