बुधवार, 31 जुलाई 2024

ग़ज़ल 408 [34 A] : किन किन ख़याल-ओ-ख़ाब में

 ग़ज़ल 408 [34 A]

2212---1212---2212---12


किन किन ख़याल-ओ-ख़्वाब में जीता है आदमी

कितनी जगह से जुड़ के भी टूटा है आदमी ।


कितने सवाल हैं यहाँ जीने के नाम पर ,

हर इक सवाल में यहाँ उलझा है आदमी ।


हालात-ज़िंदगी में वह ऐसा जकड़ गया ,

हँसता न आदमी है, ना रोता है आदमी ।


जो भी गए हैं वह सभी इस राह से गए

जा कर वहाँ से कब कहाँ लौटा है आदमी।


आवाज़ आप दें उसे , बोलेगा वह ज़रूर

अन्दर जो दिल में आप के बैठा है आदमी ।


हर मोड़ पर हज़ार जहाँ आदमी दिखे ,

पर आदमी में अब कहाँ दिखता है आदमी ।


मुशकिल तमाम है तो क्या ’आनन’ ये जान लो

ज़िंदा है हौसला तो फिर ज़िंदा है आदमी ।


-आनन्द.पाठक- 


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