ग़ज़ल 400 [42-A]
21---121---121--122 // 21---121--121--122
खोटे
सिक्के ले हाथों में, मोल
लगाने लोग खड़े हैं
घड़ियाली
आँसू से पूरित, दर्द
जताने लोग खड़े हैं ।
आज
धुँआ फिर से उठ्ठेगा, झुग्गी
झोपड़पट्टी से ही
कल
जैसा ही दुहराने को, आग
लगाने लोग खड़े हैं ।
बेच
दिए ’रामायण-गीता’ आदर्शों की बात भुला कर
वाचन
करने को तत्पर हैं, अर्थ
बताने लोग खड़े हैं ।
दीन-धरम
है बाक़ी अब भी कुछ लोगों के दिल के अंदर
आग
लगाने वालों सुन लो, आग
बुझाने लोग खड़े हैं ।
दुनिया
भर की बात करेंगे, चाँद
सितारे हैं मुठ्ठी में
करना
धरना एक नही कुछ, गाल
बजाने लोग खड़े हैं ।
शर्म-ओ-हया
की बात कहाँ अब,जिस्म
नुमाइश का फ़ैशन है
वाजिब
है कुछ की नजरों मे, आज
बताने लोग खड़े हैं।
’आनन’ तुम
भी कैसी कैसी, झूठी
बातों में आते हो
झूठे
वादों से जन्नत की, सैर
कराने लोग खड़े हैं ।
-आनन्द पाठक-
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