अनुभूतियाँ 145/32
577
एक समय ऐसा भी आया
जीवन में अंगारे बरसे ।
जलधारों की बात कहाँ थी
बादल की छाया को तरसे ।
जीवन में अंगारे बरसे ।
जलधारों की बात कहाँ थी
बादल की छाया को तरसे ।
578
एक बात को हर मौके पर
घुमा-फिरा कर वही कहेगा।
ग़लत दलीलें दे दे कर वह
ग़लत दलीलें दे दे कर वह
ग़लत बात को सही कहेगा ।
579
सीदी राह नहीं चलना है
जाने कौन सिखाता उसको।
"राम-कथा" में "शकुनि मामा"
जाने कौन पढ़ाता उसको ।
580
580
अहम, अना, मद, झूठ, दिखावा
भरम पाल कर वह जीता है ।
बाहर से वह भले छुपा ले
बाहर से वह भले छुपा ले
भीतर से रीता रीता है ।
-आनन्द पाठक-
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