ग़ज़ल 402 [ 59-A ]
[ 221-2122—221—212 ]
Bahr-e-Muzaare-musamman Akharab saalim akharab mahazoof
हर दर्द नागहाँ हो, यह भी तो सच नहीं
आँखों से ही बयाँ हो, यह भी तो सच नहीं ।
इलजाम उनके सर पर, कहते कि झूठ है
बिन आग का धुआँ हो, यह भी तो सच नहीं ।
माखन न तुमने खाया, बस दूध के धुले हो
चेहरे से ना अयाँ हो, यह भी तो सच नहीं है ।
तुम हाशिए पे आए , साजिश बता दिया
ख़ुद इतने नातवाँ हो, यह भी तो सच नहीं ।
’दिल्ली’ में बारहा तुम , मजमा लगा रहा
तुम मीर-ए-कारवाँ हो, यह भी तो सच नहीं ।
काजल की कोठरी में, बेदाग़ तुम नहीं
मासूम बेज़ुबाँ हो ,यह भी तो सच नहीं ।
इतनी बड़ी तो हस्ती, ’आनन’ नहीं तेरी,
तुम ख़ुद ही आसमाँ हो, यह भी तो सच नहीं ।
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