मंगलवार, 30 जुलाई 2024

ग़ज़ल 407 [35 A] : आप अपने आप को भी तोलिए--

 ग़ज़ल 407 [35 A]

2122---2122---212


आप अपने आप को भी तोलिए

आदमी को आदमी से जोड़िए

 

अपनी पलकॊ पर बिठा रखते हैं लोग

प्यार से जब आप उनसे बोलिए

 

तीरगी का आप चाहे जो करें

रोशनी को तो भला मत रोकिए,

 

देखिए कैसे बदलती है फ़ज़ा

दिल से दिल को जोड़ कर तो देखिए

 

कौन जाने कब जले बस्ती किधर

आप नफ़रत और तो मत घोलिए ।

 

सामने आने लगे मंज़र नए

अब पुराना राग अपना छोड़िए ।

 

बस गले मिलना ही ”आनन’ जी, नहीं

दिल की गाँठें भी ज़रा तो खोलिए

 

-आनन्द.पाठक-

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