ग़ज़ल 407 [35 A]
2122---2122---212
आप अपने आप को भी तोलिए ,
ज़िंदगी अपनी नज़र से देखिए ।
लोग पलकों पर बिठा लें आप को
आप उनका दर्द अपना सोचिए ।
तीरगी का आप चाहे जो करें
रोशनी को तो भला मत रोकिए ।
देखिए कैसे बदलती है फ़ज़ा ,
दिल से दिल को जोड़ कर तो देखिए।
कौन जाने कब किधर बस्ती जले
नफ़रती इस आग से मत खेलिए ।
आ गए जब सामने मंज़र नए ,
राग अपना अब पुराना छोड़िए ।
साहिब-ए-आनन यही काफी नहीं
दिल की गाँठें भी ज़रा तो खोलिए ।
-आनन्द.पाठक-
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