ग़ज़ल 406[ 36 A]
2122---2122---2122---212
रास्ते अब भी मिलेंगे, आप चलिए तो सही ,
हौसले से दो क़दम गर आप रखिए तो सही ।
लोग जो पत्थर से हैं वह ख़ुद बख़ुद गल जाएँगे,
बाँह में भर कर गले से, आप मिलिए तो सही ।
आदमी ज़िंदा हो या मुर्दा उठेगा एक दिन ,
इन्क़लाबी जोश में कुछ आग भरिए तो सही ।
सोचते जो रह गए, बैठे हुए हैं आज तक ,
शीश ख़ुद परबत झुकाए, आप चढ़िए तो सही ।
गुनगुनाती बह चलेगी पत्थरों से निर्झरी
दर्द कुछ अपनी ग़ज़ल में आप भरिए तो सही ।
इन अँधेरों की चुनौती है नहीं इतनी बड़ी
प्यार का दीपक जला कर आप रखिए तो सही ।
हज़रत-ए-आनन ज़रा आँखें तो अपनी खोलिए
देश की हालात पर कुछ आप कहिए तो सही ।
-आनन्द.पाठक-
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