रविवार, 28 जुलाई 2024

अनुभूतियाँ 143/30


अनुभूतियाँ 143/30

569
मेरी शराफत मेरी लताफत 
मेरी कमजोरी तो नहीं  है
सही  समझना मुझको वैसे
तेरी मजबूरी तो नही है ।

570
तुमने मना किया है मुझको
" कोई ग़ज़ल कहूँ ना तुम पर"
मुझसे ना ये  हो पाएगा 
करूँ अनसुना मन की सुन कर । 

571
लेना-देना क्या है तुमसे
प्रेम-प्रीत का बस वंदन है
एक अलौकिक एक अलक्षित
जनम जनम का यह बंधन है ।

572
सदियों से है रीति चलन मे
प्यार मुहब्बत जग जाने है 
तुम न समझ पाओगी क्या है
मन मेरा बस पहचाने है ।

-आनन्द पाठक-

कोई टिप्पणी नहीं: