अनुभूतियाँ 143/30
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मेरी शराफत मेरी लताफत
मेरी कमजोरी तो नहीं है
सही समझना मुझको वैसे
तेरी मजबूरी तो नही है ।
570
तुमने मना किया है मुझको
" कोई ग़ज़ल कहूँ ना तुम पर"
मुझसे ना ये हो पाएगा
करूँ अनसुना मन की सुन कर ।
571
लेना-देना क्या है तुमसे
प्रेम-प्रीत का बस वंदन है
एक अलौकिक एक अलक्षित
जनम जनम का यह बंधन है ।
572
सदियों से है रीति चलन मे
प्यार मुहब्बत जग जाने है
तुम न समझ पाओगी क्या है
मन मेरा बस पहचाने है ।
-आनन्द पाठक-
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