अनुभूतियाँ 144/31
573
अंगारों पर चला किए हैं
मैं क्या जानू पथ फूलों का ।
मैं क्या जानू पथ फूलों का ।
कुछ तो कर्ज रहा है मुझ पर
राह रोकते उन शूलों का ।
574
व्यर्थ बात में सदा तुम्हारा
मन रहता है उलझा उलझा
अन्तर्मन से कभी पूछना
तुमने नहीं जरूरी समझा
575
छोड़ो अब अंगार उगलना
कुछ तो मीठी बातें कर लो
कल हम दोनों कहाँ रहेंगे
मन में कुछ खुशियाँ तो भर लो।
576
सतत साधना व्यर्थ न जाती
गले लगा लेते जो , प्रियतम !
गले लगा लेते जो , प्रियतम !
जनम सफ़ल हो जाता मेरा
अपना अगर बना लो, प्रियतम !
-आनन्द.पाठक-
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