मंगलवार, 25 जून 2024

ग़ज़ल 393 [56फ़] : वह खटाखट खटाखट बता कर गया

 ग़ज़ल 393[ 56F]

212---212---212---212


वह ’खटाखट’ खटाखट’ बता कर गया

हाथ में पर्चियाँ मैं लिए हूँ खड़ा ।


बेच कर के वो सपने चला भी गया

सामना रोज सच से मै करता रहा  ।


उसने जो भी कहा मैने माना ही क्यों

वह तो जुमला था जुमले में क्या था रखा।


आप रिश्तों को सीढ़ी समझते रहे

मैं समझता रहा प्यार का रास्ता ।


झूठ की थी लड़ाई बड़े झूठ से 

’सच’- चुनावो से पहले ही मारा गया ।


अब सियासत भी वैसी कहाँ रह गई

बदजुबानी की चलने लगी जब  हवा ।


उसकी बातों में ’आनन’ कहाँ फ़ँस गए

आशना वह कभी ना किसी का हुआ  ।


-आनन्द.पाठक- 

सं 02-07-24


कोई टिप्पणी नहीं: