गुरुवार, 6 जून 2024

मुक्तक 14 : [फ़र्द]

 मुक्तक 14[फ़र्द]

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1222---1222---1222---1222

भला कब डूबने देंगे तुम्हारे चाहने वाले

दुआ कर के बचा लेंगे, तुम्हारे चाहने वाले

पता तुमको न हो शायद, इज़ाज़त दे के तो देखो

कि पलकों पर बिठा लेंगे, तुम्हारे चाहने वाले ।


2/13

2122--2122---212

 राह-ए-उल्फ़त में कभी ऐसा तो कर

दिल को तू पहले अभी शैदा तो कर

सिर्फ़ सजदे में पड़ा है बेसबब

इश्तियाक़-ए-इश्क़ भी पैदा तो कर । 


3/12

212---212--212---212

कोई कहता नहीं, उनसे मेरी तरह

कोई खुलता नहीं दिल से मेरी तरह

जो मिले मुझसे, चेहरे चढ़ाए हुए

कोई मिलता नहीं मुझसे मेरी तरह ।


4/29

2212----2212----2212----2212

नासेह ये तेरा फ़लसफ़ा नाक़ाबिल-ए-मंज़ूर

क्या सच यहाँ कि हूर से बेहतर वहाँ की हूर ?

याँ सामने है मैकदा और तू बना है पारसा

फिर क्यों ख़याल-ए-जाम-ए-जन्नत से हुआ मख़्मूर है ।


-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ

  [इश्तियाक-ए-इश्क़ = प्रेम की लालसा]\

पारसा = संयमी

मख़्मूर  = ख़ुमार में



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