शुक्रवार, 7 जून 2024

मुक्तक 16 : [फ़र्द]

मुक्तक 16[फ़र्द]

1/25

1222---1222---1222---1222

अगर एहसास है ज़िंदा तो राह-ए-दिल सही मिलती

वगरना इन अँधेरों में कहाँ से रोशनी मिलती ।

तेरा होना, नही होना, भरम है भी तो अच्छा है 

न  होता तू तसव्वुर में कहाँ फिर ज़िंदगी मिलती ।

2/09

1222    1222  1222  22

नज़र आया उन्ही का हुस्न माह ए कामिल में

नहीं उतरा नहीं आया कोई उन सा दिल में

बचाता खुद को तो कैसे बचाता मै 'आनन'

बला की धार थी उनकी निगाह ए क़ातिल में

3/19

1222---1222---1222---122

न जाने किस दिशा से ग़ैब से ताक़ीद आती है

अभी कुछ साँस बाक़ी है, नज़र उम्मीद आती है

जो अफ़साना अधूरा था विसाल-ए-यार का ’आनन’

चलो वह भी सुना दो अब कि मुझको नींद आती है ।


4/18

1222---1222---1222---1222

ये उल्फ़त की कहानी है कि पूरी हो न पाती है

कभी अफ़सोस मत करना कि हस्ती हार जाती है

पढ़ो ’फ़रहाद’ के किस्से यकीं आ जायेगा तुमको

मुहब्बत में कभी ’तेशा’ भी बन कर मौत आती है ।

-आनन्द.पाठक-



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