क़िस्त 104 /14 [माही उस पार]
1
जब तुम न नज़र आए
लाख हसीं चेहरे
मुझको न कभी भाए
2
नफ़रत को हराना है
तो सबके दिल में
उलफ़त को जगाना है
3
बस्ती तो जलाते हो
क्या हासिल होता
यह क्यों न बताते हो?
4
गुलशन में महक कैसी?
तुम तो नही गुज़री
डाली में लचक कैसी?
5
माना कि अँधेरा है
धीरज रख प्यारे
होने को सवेरा है
-आनन्द.पाठक-
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