रविवार, 9 जून 2024

मुक्तक 17[ फ़र्द]

 मुक्तक 17[ फ़र्द]


1/05
221---2121---1221---212
बस आप की झलक से ही चढ़ता सुरूर है
क्या इश्क़ है? अदब है, मुजस्सम शुऊर् है
हुस्न-ओ-जमाल यूं तो इनायत ख़ुदा की है
किस बात का हुज़ूर को इतना गुरूर है ।


2/22

2122----2122---2122---2122

इन्क़लाबी मुठ्ठियाँ तू खींच कर एलान कर दे
एक तिनके को ख़ुदा चाहे तो फिर जलयान कर दे
गर हवा सरमस्त भी हो क़ैद कर सकता है तू
हौसला दिल में जगा कर राह तू आसान कर दे ।

3/6
1222   1222   1222  1222
कभी लगता है, आने को ,अचानक आ के उड़ जाती 
जहाँ ख्वाबों को गाना था वहाँ पीड़ा स्वयं गाती
अजब क्या चीज है यह नींद जो आँखों में बसती है
जब आनी है तो आती है, नहीं आनी, नहीं आती

4/21
2122   2122   2122   212
आप इमान ए मुजस्सम, बेइमां हम भी न हैं
आप खुदमुख्तार हैं तो बेनिशाँ हम भी न है
यह शराफत है हमारी आप की सुन गालियाँ
चुप रहे वरना सुनाते बेजुबां हम भी न है ।

-आनन्द पाठक-


 

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