मुक्तक 12[ फ़र्द]
1/38
221--2121--1221--212
वह झूठ बोलता है , हुनरमंद यार है
ईमान बेचकर भी वो ईमानदार है
कर के गुनाह-ओ-जुर्म भी वह मुस्करा रहा
कहते सभी वो शख़्स बड़ा होशियार है ।
2/37
221---2121---1221---212
क्या इश्क़ है ग़लत कि सही? और बात है,
हसरत अयाँ न हो कि दबी ,और बात है ,
हाज़िर है मेरी जान मुहब्बत में आप की
माँगा न आप ने ही कभी, और बात है ।
3/1
1222---1222----1222---1222
ये दिल बेचैन रहता है अगर उनको नही पाता
भले गुलशन हो सतरंगी, बिना उनके नहीं भाता
सकून-ओ-चैन, ज़ेर-ए-हुक्म उनके आने जाने पर
वो आते हैं तो आता है, नहीं आते नही आता ।
4/8
2122---2122---212
ग़ौर से देखा नहीं खुद आप ने
झूठ कब बोला किए हैं आइने
खुद का चेहरा ख़ुद नज़र आता नहीं
जब तलक न आइना हो सामने ।
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें