क़िस्त 103/13 [माही उस पार]
1
देखा जो कभी होता
ग़ौर से जब तुमको
मैं खुद में नहीं होता ।
2
ऎ दिल ! क्यॊं दीवाना
कब उसको देखा
पढ़ कर ही जिसे जाना ।
3
जो तेरे अन्दर है
देख ज़रा, पगले !
क़तरे में समन्दर है ।
4
भगवा कंठी माला
व्यर्थ दिखावा क्यों
जब मन तेरा काला ।
5
ऐसा भी आना क्या
"जल्दी जाना है"
हर बार बहाना क्या ।
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