ग़ज़ल 386[50F]
1222---1222---1222---1222
खुदा की जब इनायत हो बहार-ए-हुस्न आती है।
अगर दिल पाक हो तो फिर मुहब्बत ख़ुद बुलाती है ।
जुनून-ए-इश्क़ में फिरते, ख़िज़ाँ क्या है , बहारां क्या
फ़ना होना ही बस हासिल, यही दुनिया बताती है ।
नवाज़िश आप की साहिब !बहुत मश्कूर है यह दिल
मेरी मक़रूज़ है हस्ती ,ज़ुबाँ देकर निभाती है ।
लगा करती हैं जब जब ठोकरें, आँखें खुला करती
यही ठोकर सदा इन्सान को रस्ता दिखाती है ।
कहाँ आसान होता है गली तक यार की जाना
जो जाती है कभी यह ज़िंदगी कब लौट पाती है
हवाएं साजिशें रचतीं चिरागों कॊ बुझाने की
जो लौ जलती जिगर के खून से, कब ख़ौफ़ खाती है
अजब उलफ़त की नदिया है, अजब इसका सिफ़त ’आनन’
नहीं चढ़ना, नही चढ़ती, चढ़ी तो रुक न पाती है ।
-आनन्द.पाठक-
सं 01-07-24
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