मुक्तक 19
1
1212---1122--1212---112
इसी सवाल का मैं ढूँढता जवाब रहा
मेरा नसीब था या ख़ुद ही मैं ख़राब रहा
ये बात और है उसने मुझे पढ़ा ही नहीं
वगरना उसके लिए मैं खुली किताब रहा
2
2122 2122 2122 2
बात तो वह कर रहा था चाँद लाने की
ढूँढता अब राह रोजाना बहाने की
वह 'खटाखट' दे रहा था हम न ले पाए
बात अब तो रह गई सुनने सुनाने की ।
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-आनन्द.पाठक-
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