मुक्तक 19
1
1212---1122--1212---112
इसी सवाल का मैं ढूँढता जवाब रहा
मेरा नसीब था या ख़ुद ही मैं ख़राब रहा
ये बात और है उसने मुझे पढ़ा ही नहीं
वगरना सबके लिए मैं खुली किताब रहा
2
2122 2122 2122 2
बात तो वह कर रहा था चाँद लाने की
ढूँढता अब राह रोजाना बहाने की
दे रहा था वह खटाखट, हम न ले पाए
बात अब तो रह गई सुनने सुनाने की ।
3
2122 2122 212
मुझ-सा कोई तेरा दीवाना नहीं
तूने जाने क्यों मगर माना नहीं
एक दिन मै भी तेरा हो जाऊँगा
क्या करूँ मैं, खुद को पहचाना नहीं
4
2122 2122 212
है हकीकत, कोई अफसाना नहीं
क्यों जमाने से है याराना नहीं
उम्र भर तो तुम मुखौटो पर जिए
इसलिए खुद को कभी जाना नहीं
-आनन्द.पाठक-
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