रविवार, 9 जून 2024

मुक्तक 19

 मुक्तक 19

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1212---1122--1212---112

इसी सवाल का मैं ढूँढता जवाब रहा

मेरा नसीब था या ख़ुद ही मैं ख़राब रहा

ये बात और है उसने मुझे पढ़ा ही नहीं

वगरना उसके लिए मैं खुली किताब रहा

2

2122   2122   2122  2

बात तो वह कर रहा था चाँद लाने की

ढूँढता अब राह रोजाना बहाने की

वह 'खटाखट' दे रहा था हम न ले पाए

बात अब तो रह गई सुनने सुनाने की ।

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-आनन्द.पाठक-

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