शनिवार, 15 जून 2024

ग़ज़ल 392[55F] : सफ़र शुरु हुआ नहीं कि लुट गया है

 ग़ज़ल 392[55F]

1212---1212---1212---1212

ह्ज़ज मक़्बूज़ मुसम्मन


सफ़र शुरु हुआ नहीं कि लुट गया है क़ाफ़िला

जहाँ से हम शुरु हुए, वहीं पे ख़त्म  सिलसिला ।


दो-चार ईंट क्या हिली कि हो गया भरम उसे

इसी मुगालते में है किसी का ढह गया किला ।


वो झूठ पे सवार हो उड़ा किया इधर उधर

वो सत्य से बचा किया, रहा बना के फ़ासिला।


तमाम उम्र वह अना की क़ैद में जिया किया

वह चाह कर भी ख़ुद कभी न ज़िंदगी से ही मिला।


इसी उमीद में रहा बहार लौट आएगी

कभी न ख़त्म हो सका मेरे ग़मों का सिलसिला ।


मिला कभी तो यूँ मिला कि जैसे हम हो अजनबी

कभी गले नहीं मिला, न दिल ही खोल कर मिला ।


रहा खयाल-ओ-ख़्वाब में वो सामने न आ सका

अब ’आनन’-ए-हक़ीर को रहा नहीं कोई गिला ।


-आनन्द.पाठक-

सं 01-07-24

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