एक ग़ज़ल 28[11 A]
बह्र-ए-रमल मुसद्दस सालिम
2122---2122---2122
झूठ की बातों को उसने सत्य माना
सत्य कहने का नही है अब ज़माना
गालियाँ ही आजतक उसको मिली है
जब भी पर्दाफ़ाश करने को है ठाना
लोग बच बच कर निकलने लग गए
जब कभी वह बात करता आरिफ़ाना
वह अजायब घर की जैसे चीज कोई
नेक इन्सां का हुआ जैसे ठिकाना
मैं किसी को क्या बताता जख़्म अपना
है किसे फ़ुरसत किसी को क्या दिखाना
जब अदालत का हुआ आदिल ही बहरा
क्या करे फ़रियाद कोई, क्या सुनाना
सूलियों पर है टँगा हर बार ’आनन’
जब मुहब्बत का सुनाता है तराना ।
-आनन्द.पाठक-
सं-1