शनिवार, 24 जनवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 14



1:
कहने को याराना
वक़्त ज़रूरत, वो
हो जाता बेगाना


:2:
दिल में जो लगी हो लौ
आना चाहो तो
आने की राहें सौ

:3:
रह-ए-इश्क़ में हूँ गाफ़िल
दुनिया कहती है
मंज़िल यह ला-हासिल

:4;
इस दिल को तसल्ली है
 क़ायम है अब भी
तेरी जो तजल्ली है

:5;

जुल्फ़ों को सुलझा लो
या तो इन्हें बाँधो
या मुझको उलझा लो


[तजल्ली =ज्योति.नूर-ए-हक़]


-आनन्द.पाठक

[सं 10-06-18]

बुधवार, 14 जनवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 13


:1:

इक अक्स उतर आया

दिल के शीशे में
फिर कौन नज़र आया

:2:

ता उम्र रहा चलता
ख्वाब मिलन का था
आँखों में रहा पलता


:3:
तुम से न कभी सुलझें
अच्छी लगती हैं
बिखरी बिखरी ज़ुल्फ़ें



:4:
गो दुनिया फ़ानी है
लेकिन जैसी भी
लगती तो सुहानी है

:5:


वो मज़हब में उलझे

मजहब के आलिम
इन्सां को नहीं समझे


-आनन्द.पाठक

[सं0 09-06-18]

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

गीत 57 : जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !



फिसल गए तो हर हर गंगे ,जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !

वो विकास की बातें करते करते जा कर बैठे दिल्ली

कब टूटेगा "छीका" भगवन ! नीचे बैठी सोचे बिल्ली
शहर अभी बसने से पहले ,इधर लगे बसने भिखमंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे ! ........

नई हवाऒं में भी उनको जाने क्यों साजिश दिखती है

सोच अगर बारूद भरा हो मुठ्ठी में माचिस  दिखती है
सीधी सादी राहों पर भी चाल चला करते बेढंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे ! .....

घड़ीयाली आँसू झरते हैं, कुर्सी का सब खेलम-खेला

कौन ’वाद’? धत ! कैसी ’धारा’,आपस में बस ठेलम-ठेला
ऊपर से सन्तों का चोला ,पर हमाम में सब हैं नंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !

रामराज की बातें करते आ पहुँचे हैं नरक द्वार तक

क्षमा-शील-करुणा वाले भी उतर गए है पद-प्रहार तक
बाँच रहे हैं ’रामायण’ अब ,गली गली हर मोड़ लफ़ंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !

अच्छे दिन है आने वाले साठ साल से बैठा ’बुधना"

सोच रहा है उस से पहले उड़ जाए ना तन से ’सुगना’
खींच रहे हैं "वोट" सभी दल शहर शहर करवा कर दंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !


-आनन्द-पाठक-


शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 12



:1:

दीदार न हो जब तक
 चढ़ता ही जाए
उतरे न नशा तब तक

:2:


ये इश्क़ सदाकत है

खेल नहीं , साहिब !
इक तर्ज़-ए-इबादत है

:3:


बस एक झलक पाना

मतलब है इसका
इक उम्र गुज़र जाना

:4:


अपनी पहचान नहीं

ढूँढ रहा बाहर
भीतर का ध्यान नहीं

:5:


जब तक मैं हूँ ,तुम हो

कैसे कह दूँ मैं
तुम मुझ में ही गुम हो

-आनन्द.पाठक

[सं 09-06-18]