ग़ज़ल 328[04फ़]
122--122--122--122
मुझे क्या ख़बर किसने क्या क्या कहा है
अभी मुझ पे तारी तुम्हारा नशा है ।
तुम्हें शौक़ है आज़माने का मुझको
हमेशा हूँ हाज़िर ,मना कब किया है |
अभी शाम में ख़त मिला जो तुम्हारा
वही मैं पढ़ा जो न तुमने लिखा है |
हज़ारों मनाज़िर मेरे सामने थे
तुम्हारे सिवा कब मुझे कुछ दिखा है ।
बदन ख़ाक की मिल गई ख़ाक में जब
ये हंगामा इतना क्यों बरपा हुआ है ।
नई रोशनी घर में आए तो कैसे
न खिड़की खुली है, न दर ही खुला है ।
समझ जाएगी एक दिन वह भी ’आनन’
अभी वह मुहब्बत से नाआशना है॥
-आनन्द.पाठक-
सं 26-06-24