मंगलवार, 30 मई 2023

ग़ज़ल 328[04 फ़] : मुझे क्या ख़बर किसने--

 ग़ज़ल 328[04फ़]

122--122--122--122


मुझे क्या ख़बर किसने क्या क्या कहा है

अभी मुझ पे तारी तुम्हारा  नशा  है ।


तुम्हें शौक़ है आज़माने का मुझको

हमेशा हूँ हाज़िर ,मना कब किया है |


अभी शाम में ख़त मिला जो तुम्हारा

वही मैं पढ़ा जो न तुमने लिखा है |


हज़ारों मनाज़िर मेरे सामने थे

तुम्हारे सिवा कब मुझे कुछ दिखा है ।


बदन ख़ाक की मिल गई ख़ाक में जब

ये हंगामा इतना क्यों बरपा हुआ  है ।


नई रोशनी घर में आए तो कैसे 

न खिड़की खुली है, न दर ही खुला है ।


समझ जाएगी एक दिन वह भी ’आनन’

अभी वह मुहब्बत से नाआशना है॥


-आनन्द.पाठक- 

सं 26-06-24

सोमवार, 22 मई 2023

ग़ज़ल 327 [ 03F] : ज़िंदगी में रही एक कमी उम्र भर

 ग़ज़ल 327[03F]

212---212---212---212

जिंदगी में रही इक कमी उम्र भर

इन लबों पर रही तिशनगी उम्र भर ।


तुम जो आते तो दिल होता रोशन मेरा

तुम न आए रही तीरगी  उम्र भर 


जानता हूँ मगर पूछ सकता नहीं

ज़िंदगी क्यों मुझे तुम छ्ली उम्र भर ?


ये नज़ाकत, लताफ़त ये क़ातिल अदा

किसकी क़ायम यहाँ कब रही उम्र भर !


आप की बात पर था भरोसा मुझे

राह देखा किए आप की उम्र भर


हो न लुत्फ़-ओ-इनायत भले आप की

दिल करेगा मगर बंदगी उम्र भर


सबको अपना समझते हो ’आनन’ यहाँ

कौन होता किसी का कहाँ उम्र भर ?


-आनन्द.पाठक-

सं 22-06-24